Monday, May 25, 2009

बिहार का महादलित

आज कल बिहार में एक शब्द की पुर्नाविरती बार-बार हो रही है " महादलित " । वास्तव में ये महा दलित कौन है । मई यहाँ असपस्त करना चाहता हु की दलित या महा दलित शब्द mउझे पसंद नही। वास्तव में महा दलित शब्द नीतिश देन है परन्तु खेद इसबात का का है की जो अच्छी काम महादलित नाम पे हो रहा है क्या उससे हमारे समाज में विघिटन नही आएगी ? लालू को हटाने के लिए जो ये हत्कंदा नीतिश जी इस्तमाल कर रहे है उसका शिकार फिर हमारा समाज न बन जाए। ये सुच है की बिहार में जातिवाद है और इसके लिए लालू से कही जादा यहाँ के सवर्ण समाज जिमेदार है। इस समाज को ये समझना होगा की बिना दलितों के उत्थान के आप देवेलोपेद देश का प्रोपोगेन्डा तो कर सकते हो पर वास्तव में आप बन नही सकते। हमें इन्हे भी सत्ता के साथ-साथ सभी जगह इनहे हिस्सेदारी देनी होगी। बिहार में सवर्ण समाज बहुत ही संकीर्ण सोच रखता है। हमें गुजरात जैसे राज्य से ये सीखना चाहिए की कैसे एक दुसरे के साथ मिलकर आर्थिक करांति लिए जा सकती है। मई ये बात इस बोलग पे नही बताना चाहता हु पर लिख रहा हु ये सोच कर की शयद इसे पढ़ने के बद्द यदि एक आदमी के सोच में भी परिवर्तन होता है तो .........
मई अपने गहर में बैठा था , मेरे माताजी और पिताजी दोनों बहार गए हुए थे , तभी एक ब्राहमण मेरे घर में आया और बोला पानी मिलेगा। मई पाने देने को घर के अंदर गया और पानी लेके आया , पानी पिने से पहेले बाबा ने मुझसे पुचा बेटा तुम्हारा जात क्या है ?
यदि इस सोच से हम बहार नही आते तो हमें लालू, मुलायम, माया को ग़लत कहने का कोई हक नही बनता। विचारो का दोगलापन तो हमारे आस पास है और हम इसे दुशारो में धुन्द्ते है। जिस दिन हम झूटे अहम् को मार कर साचा बिहार के बारे में सोचने लगेंगे उस दिन बिहार आगे जाएगा। रास्ता aपपने चुनना है क्यो की ९०% संसाधन का दोहन अपने किया है इस लिए सुरुआत अप्पने ही करने है।

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