आज का मंत्रिमंडल विस्तार देख कर लगा की क्या आज भी हम गुलाम देश में रहते है? समय बदला पर उनलोगों ढ सत्ता नही बदली जो आज़ादी के बाद अब तक गरीबो के नाम पर करोरेपति बनते रहे है।
क्या राहुल गाँधी जानते है की दो वकुत की बूख क्या होती है? जानने का दिखावा तो कर सकते है पर जानते नही। कभी-कभी मन न लगे तो रूलर पर्यटन कर लेते है।
देश को एक बार फिर गुलाम होना है और हो रहा है और इसबार mई नरो में नही फसने वाला मौका मिला तो dएश को लूट लो । राम नाम की की लूट है लूट सके तो लूट।
इस आज़ादी का क्या फायदा जिसमे ६०% जनता आज़ादी के ५० साल बाद भी गरीबी रेखा के नेचे है और लोग अपने बेटा को सिर्फ़ पम बनने की तैयार में लगे हो। एक भी नेता इन लोगो के बाच में से क्यो नही अत्ता?
ऐसे प्रजातंत्र को दूर से ही सालम।
आज कल टीवी पर यूवा लोगो की खूब बाते हो रही है, पर उन यूवा लोगो में कितने ऐसे है जिन्हें जीवन में संघर्ष करना पारा हो दो roti ke liye. sare ke sare ko राजनीती विरासत में मिली है। संघर्ष क्या होता है शयद ही इन्हे पता हो। इनका संघर्ष सिर्फ़ इगो की लडाई है।
ऐसे प्रजातंत्र को दूर ही से राम-राम।
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